एशियाई विकास बैंक एक बहुपक्षीय वित्तीय संस्था है। इस बैंक की स्थापना एशिया और प्रशान्त क्षेत्रों में आर्थिक विकास को प्रोत्साहन देने के उद्देश्य से की गई है।
मुख्यालयः मनीला (फिलीपीन्स)।
सदस्यताः (क्षेत्रीय सदस्य) अफगानिस्तान, आर्मेनिया, आस्ट्रेलिया, अजरबैजान, बांग्लादेश, भूटान, ब्रूनेई दारुस्ताम, कम्बोडिया, चीन, कुक द्वीप समूह, फिजी, जार्जिया, हांगकांग, भारत, इण्डोनेशिया, जापान, कजाखस्तान, किरिबाती, कोरिया गणराज्य, किर्गिस्तान, लाओस, मलेशिया, मालदीव, मार्शल द्वीप समूह, माइक्रोनेशिया, मंगोलिया, म्यांमार, नौरु, नेपाल, न्यूजीलैंड, पाकिस्तान, पापुआ न्यू गिनी, फिलिपीन्स, सिंगापुर, सोलोमन द्वीप समूह, श्रीलंका, ताइवान, थाइलैंड, टोंगा, तिमोर-लिस्टे, तुर्कमेनिस्तान, तुवालु, उज्बेकिस्तान, वनुआतु, वियतनाम और पश्चिमी समोआ।
गैर-क्षेत्रीय सदस्य: ऑस्ट्रिया, बेल्जियम, कनाडा, डेनमार्क, फिनलैण्ड, फ्रांस, जर्मनी, आयरलैंड, इटली, लग्जमबर्ग, नीदरलैण्ड, नॉर्वे, पुर्तगाल, स्पेन, स्वीडन, स्विट्जरलैण्ड, तुर्की, युनाइटेड किंगडम और संयुक्त राज्य अमेरिका।
उत्पत्ति एवं विकास
एशियाई विकास बैंक की स्थापना ‘एस्कैप' [ESCAP (तत्कालीन ECAFE)] के तत्वावधान में हुई और इसने 1966 में मनिला में अपनी कार्य प्रारम्भ किया। इसकी स्थापना के 31 सदस्यों से लेकर आज इसके सदस्य 67 हो गए हैं।
मार्च 2017 की स्थिति के अनुसार, एडीबी की सदस्य संख्या 67 है, जिसमें से 48 सदस्य एशियाई देश तथा 19 सदस्य देश गैर-एशियाई देश हैं। उल्लेखनीय है कि एडीबी का अध्यक्ष पद किसी जापानी को ही दिया जाता रहा है, जबकि इसके तीनों उपाध्यक्षों में से एक अमेरिका का, एक यूरोप का व एक अन्य एशिया का प्रतिनिधि होता है। वर्तमान में वैश्विक जीडीपी में एशिया का योगदान 27 प्रतिशत है।
भारत बैंक के निदेशक मण्डल का कार्यकारी निदेशक है। इसके अधिकार क्षेत्र में भारत, बांग्लादेश, भूटान, लाओ पीडीआर, और ताजिकिस्तान शामिल हैं।
उद्देश्य
एशियाई विकास बैंक किसी सदस्य राष्ट्र-समूह को प्रत्यक्ष ऋण या तकनीकी सहायता प्रदान करता है। बैंक इन उद्देश्यों की पूर्ति के लिए सदस्य राष्ट्रों को ऋण या तकनीकी सहायता देता है, जैसे- आर्थिक विकास को प्रेरित करना, सामान्य आर्थिक नीतियों और व्यापार में समन्वय स्थापित करना, गरीबी को कम करना, महिलाओं की स्थिति में सुधार लाना, मानव विकास (जनसंख्या नियोजन सहित) को समर्थन देना और पर्यावरण संरक्षण।
संरचना
बैंक की संस्थागत संरचना अन्य अंतरराष्ट्रीय वित्तीय संस्थाओं की तरह ही है। इसमें एक गवर्नर बोर्ड होता है, जिसमें प्रत्येक राष्ट्र का प्रतिनिधित्व एन गवर्नर और एक वैकल्पिक गवर्नर के द्वारा होता है। यह बोर्ड बैंक का प्रमुख नीति-निर्धारक अंग होता है। बोर्ड में निर्णय आमतौर पर बहुमत के आधार पर लिये जाते हैं। किसी सदस्य राष्ट्र के मताधिकार का निर्धारण बैंक की अधिकृत पूंजी में उस राष्ट्र के अंश के आधार पर होता है। गवर्नर बोर्ड के अधिकांश अधिकार 12 सदस्यों वाले निदेशक बोर्ड में प्रत्यायोजित कर दिये जाते हैं। बारह निदेशकों में 8 निदेशक क्षेत्रीय सदस्यों का तथा चार निदेशक गैर-क्षेत्रीय सदस्यों का प्रतिनिधित्व करते हैं। नये सदस्यों के प्रवेश, जमा पूंजी में परिवर्तन, निदेशक/अध्यक्ष के चुनाव, स्थापना घोषणा-पत्र (Founding Charter) में संशोधन, आदि से संबंधित अधिकारों का प्रत्यायोजन निदेशक बोर्ड में किया जा सकता है। निदेशक बोर्ड एक अधिशासी संस्था है, जो बैंक के संचालन और सामान्य निर्देशन के लिये उत्तरदायी होता है। बैंक के अध्यक्ष का कार्यकाल पांच वर्षों का होता है और वह निदेशक बोर्ड का सभापति होता है। साथ ही, बैंक में तीन उपाध्यक्ष भी होते हैं।
गतिविधियां
एडीबी की तिन प्रमुख गगतिविधियाँ हैं- विकास परियोजनाओं और कार्यक्रमों के लिए वित्तीय और तकनीकी सहायता उपलब्ध कराना; आर्थिक विकास के लिए लोक एवं निजी पूंजी निवेश को प्रोत्साहन देना, तथा; विकासशील सदस्य-राष्ट्रों की विकास योजनाओं और नीतियों के समन्वय में सहायता प्रदान करना। बैंक क्षेत्रीय, उप-क्षेत्रीय एवं राष्ट्रीय परियोजनाओं को प्राथमिकता देता है। ये परियोजनाएं किसी क्षेत्र के समग्र आर्थिक विकास में सहायक प्रमाणित होती हैं। सामाजिक और पर्यावरण परियोजनाओं पर इस बैंक का विशेष ध्यान रहता है।
एशियाई विकास बैंक के पूंजीगत संसाधन हैं- सदस्य-राज्यों के अंशदान, पूंजी बाजार से प्राप्त ऋण तथा अन्य कई स्रोतों (जैसे-अवितरित सम्पत्तियों से प्राप्त ब्याज) से प्राप्त आय। बैंक की अधिकांश पूंजी सदस्य राष्ट्रों द्वारा दिये गये अंशदान के रूप में होती है। प्रमुख अंशदाता राष्ट्र हैं- जापान, संयुक्त राज्य अमेरिका, चीन, भारत, आस्ट्रेलिया, इंडोनेशिया, कनाडा, कोरिया गणतंत्र और जर्मनी।
बैंक अपने सामान्य पूंजी संसाधनों से अधिक विकासशील देशों को व्यवसायिक और गैर-रियाअती शर्तों पर ऋण देता है। बैंक द्वारा प्रदत्त कुल ऋणों का 70 प्रतिशत इसी श्रेणी का होता है। बैंक के विशेष कोष से निर्धनतम देशों को अत्यधिक रिआयती शर्तों पर ऋण दिया जाता है। प्रमुख विशेष कोष हैं- 1974 में स्थापित एशिया विकास कोष (एडीएफ), जिसके अंतर्गत दो पूर्व कोषों- बहुउद्देशीय विशेष कोष (एमपीएसएफ) और कृषि विशेष कोष (एएसएफ)- को समाहित कर दिया गया है। एडीएफ, जो कम ब्याज पर ऋण उपलब्ध कराता है, की पूंजी का मुख्य स्रोत है- एशियाई विकास बैंक के अधिक सम्पन्न सदस्यों के द्वारा दिया गया स्वैच्छिक अंशदान। वित्तीय और तकनीकी सहायता देने के लिए एडीएफ परियोजना निर्माण एवं क्रियान्वयन, नीति-निर्धारण तथा क्षेत्रीय अध्ययनों में भी सहायता प्रदान करता है।
तकनीकी सहायता विशेष कोष (टीएएसएफ) विकासशील सदस्य राष्ट्रों के परियोजना निर्माण, रूपांकन और क्रियान्वयन क्षमता में सुधार लाने के लिए अनुदान देता है। 1988 में स्थापित जापान विशेष कोष (जेएसएफ) लोक एवं निजी क्षेत्रों में तकनीकी सहायता और सहभागिता निवेश का वित्तीय पोषण करता है।
संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम (यूएनडीपी) द्वारा पोषित राष्ट्रीय और क्षेत्रीय परियोजनाओं के लिये एडीबी एक कार्यकारी एजेंसी के रूप में कार्य करता है। यह अन्य अंतरराष्ट्रीय और क्षेत्रीय निकायों से भी निकट सम्पक बनाये रखता है ताकि एस्कैप क्षेत्र में तकनीकी एवं वित्तीय सहायता कार्यक्रमों का प्रभावशाली प्रबंधन हो सके।
रणनीति 2020: एशियाई विकास बैंक (एडीबी) की दीर्घावधिक रणनीतिक फ्रेमवर्क 2008-2020 को अप्रैल 2008 में एडीबी के निदेशक मण्डल ने स्वीकृति प्रदान की। यह एडीबी के सभी प्रचालनों की 2020 तक निर्देशित करने वाला सर्वोच्च रणनीतिक फ्रेमवर्क है। रणनीति 2020 एडीबी के निर्धनता मुक्त एशिया एवं प्रशांत क्षेत्र के विजन और सदस्य विकासशील देशों में लोगों के जीवन स्तर एवं जीवन गुणवत्ता में सुधार करने में सहायता मिशन दोनों की पुष्टि करता है।
रणनीति 2020 परिवर्तन के वाहकों की पहचान करता है जिन पर इसके सभी अभियानों में जोर दिया जाता है- निजी क्षेत्र का विकास, सुशासन को प्रोत्साहत, लिंग समानता का समर्थन, विकासशील देशों की ज्ञान प्राप्ति में सहायता करना, अन्य विकास संस्थानों, निजी क्षेत्र, और समुदाय आधारित संगठनों के साथ सहयोग बढ़ाना। वर्ष 2012 तक, एडीबी ने 80 प्रतिशत ऋण 5 आधारभूत क्षेत्रों- अवसंरचना, जिसमे परिवहन एवं संचार उर्जा, जल आपूर्ति और स्वच्छता तथा शहरी विकास शामिल हैं, पर्यावरण; प्रादेशिक सहयोग एवं समन्वय; वित क्षेत्र विकास एवं शिक्षा- को दिया जिन्हें एडीबी के तुलनात्मक शक्ति के तौर पर पहचाना जाता है। एडीबी शिक्षा, स्वास्थ्य, कृषि एवं विपति एवं आपात सहायता, पर अपना कार्य जारी रखेगा।
एशियाई विकास बैंक (एडीबी) द्वारा 48 सदस्य राष्ट्रों के संबंध में एशिया और प्रशांत क्षेत्र के मुख्य संकेतक 2013 नामक रिपोर्ट अगस्त 2013 को जारी की गई। इस रिपोर्ट में आर्थिक, वित्तीय, सामाजिक एवं पर्यावरणीय संकेतकों को शामिल किया गया है। इस रिपोर्ट का उद्देश्य नीति-निर्माताओं, विकास उद्यमियों, सरकारी अधिकारियों, शोधकर्ताओं, छात्रों एवं आम नागरिकों को एशिया और प्रशांत क्षेत्र की अर्थव्यवस्थाओं के विकास संबंधी मामलों पर नवीन आंकड़े उपलब्ध कराना है।
रिपोर्ट में एशिया में आर्थिक बदलाव की दिशा एवं दशा को समावेशित किया गया है। अर्थव्यवस्था को कैसे तीव्र और तीव्रतर बनाया जाए, की भी चर्चा की गई। विभिन्न राष्ट्रों में सहस्राब्दी विकास लक्ष्यों की स्थिति सहित सात अन्य विषयों का भी विश्लेषण किया गया है। इस रिपोर्ट में समावेशी विकास संकेतकों के फ्रेमवर्क को भी स्थान दिया गया है, जोकि समग्र विकास के 35 संकेतकों पर आधारित है। रिपोर्ट के प्रमुख तत्व इस प्रकार हैं-
- वर्तमान समय में समग्र आर्थिक माहौल बहुत अलग है। 20वीं सदी के उत्तरार्द्ध में नव औद्योगीकृत अर्थव्यवस्थाओं में भविष्य में होने वाले परिवर्तनों की गति और दिशा वैसी नहीं होगी, जैसा आज जापान में दिखती है। एशिया के अन्य विकासशील देशों में नए समूह में परिवर्तन की संभावना कम है।
- विकासशील एशियाई राष्ट्रो को गुणात्मक विकास के लिए संरचनात्मक परिवर्तन एवं निम्न उत्पादकता के क्षेत्रों से उच्च उत्पादकता के क्षेत्रों में श्रम को स्थानांतरित करने पर ध्यान केंद्रित करने की जरूरत है।
- एशिया में कृषि क्षेत्र में विकास, विशेष कर कम आय वाले देशों के भविष्य के लिए महत्वपूर्ण है। कृषि को औद्योगीकृत करने की आवश्यकता है। इसके लिए कृषि व्यवसाय को विकसित करने और आधुनिक तकनीकों/तरीकों को अपनाने की आवश्यकता है।
- नए उत्पादों के निर्माण, नये बाजारों में प्रवेश और विकास की ओर अग्रसर करने हेतु नीति-निर्माताओं को फर्मों और कार्यबल की सुविधाओं पर केंद्रित करना चाहिए।
- उच्च आय स्तर प्राप्त करने हेतु विनिर्माण और औद्योगीकरण अनिवार्य है।
- सेवा क्षेत्र पहले से ही रोजगार का सबसे बड़ा स्रोत है, भविष्य में यह प्रवृत्ति जारी रहनी चाहिए।
- औद्योगिक उन्नयन के लिए उच्च गुणवत्ता वाली बुनियादी शिक्षा अनिवार्य है क्योंकि इसके द्वारा ही नये उद्योगों का विकास एवं अंतरराष्ट्रीय स्तर पर प्रतिस्पर्द्धा संभव है।
- आर्थिक परिवर्तन में तेजी लाने हेतु कुछ मामलों में सरकारी हस्तक्षेप अपरिहार्य है।
विभिन्न राष्ट्रों का विश्लेषण:
- भारत, चीन, बांग्लादेश, पाकिस्तान, थाइलैंड जैसे देश में जहां बड़ी आबादी का रोजगार का स्रोत कृषि है, वहां श्रम के अवशोषण के लिए उद्योगों और सेवाओं के विकास की आवश्यकता है। इसके लिए ग्रामीण इलाकों को औद्योगीकृत करने की आवश्यकता है।
- भारत और अन्य अर्थव्यवस्थाओं में औद्योगीकरण को नजरअंदाज कर कृषि से सेवा क्षेत्र में स्थानांतरण हुआ है। ऐसी अर्थव्यवस्थांओं के लिए गहरे और व्यापक औद्योगिक आधार विकसित करने की सिफारिश की गई है।
- विज्ञान और अभियांत्रिकी के क्षेत्र में चीन और भारत निवेश कर रहे हैं। उनके प्रयास मौजूदा उत्पादों के सस्ते संस्करण बनाने की दिशा में हो रहे हैं।
- कंबोडिया, लाओस, नेपाल जैसी कम आय वाली अर्थव्यवस्थाएं श्रम प्रधान गतिविधियों का तुलनात्मक लाभ उठा सकती हैं, लेकिन उन्हें भी क्षमताओं का संचय, विविधीकरण और उन्नयन हेतु नीति निर्माण एवं क्रियान्वयन की जरूरत है।
- उन्नत दक्षिण पूर्वी एशियाई अर्थव्यवस्थाओं हेतु विविधतापूर्ण क्षेत्रकों के उन्नयन की सिफारिश की गई है।
- मलेशिया और थाइलैंड जैसे देशों ने अपनी अर्थव्यवस्था के विकास हेतु संस्थागत क्षमता को विविधतापूर्ण बनाया है, लेकिन उन्हें भी उद्योगों को अपग्रेड करने की आवश्यकता है। ताकि मध्यम आय समूह के जाल से बाहर रह सकें।
- फिलिपींस की सेवा क्षेत्र के पूरक के रूप में औद्योगिक आधार को विकसित करने की आवश्यकता है।
- प्रशांत उपक्षेत्र के अधिकांश द्वीपों में औद्योगीकरण में कठिनाई होगी क्योंकि उनका विकास कुछ सेवाओं में निहित है।
- म्यांमार जैसे गहन सुधार प्रक्रिया से गुजर रहे राष्ट्र अन्य देशों का लाभ उठा सकते हैं।
- प्राकृतिक संसाधन संपन्न अर्थव्यवस्थाओं (जैसे-कजाखस्तान) को उन संसाधनों के प्रबंधन और विविधीकरण के बारे में सोचना चाहिए।