विश्व बैक: कार्य, उद्देश्य और भारत से सम्बन्ध

विश्व बैंक इंटरनेशनल बैंक फॉर रिकंस्ट्रक्शन एंड डेवलपमेंट (अंतरराष्ट्रीय पुनर्निर्माण एवं विकास बैंक– आईबीआरडी) के नाम से भी जाना जाता है। द्वितीय विश्व युद्ध ने विश्व की अर्थव्यवस्थाओं को बहुत नुकसान पहुंचाया था। इसलिए 1945 में युद्ध में क्षतिग्रस्त हुईं अर्थव्यवस्थाओं के पुनर्निर्माण पर ध्यान देने की जरूरत महसूस की गई। आईबीआरई का गठन दिसंबर 1945 में, ब्रेट्टन वुड्स सम्मेलन की सिफारिशों के आधार पर आईएमएफ (अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष) के साथ हुआ था। इसी वजह से आईएमएफ और विश्व बैंक को ब्रेट्टन वुड्स ट्विन भी कहा जाता है। आईबीआरडी ने जून 1946 में काम करना शुरु किया था। 

विश्व बैंक के उद्देश्य (Purposes of World Bank):-

i. आर्थिक पुनर्निर्माण एवं विकास के लिए सदस्य देशों को दीर्धकालिक पूंजी प्रदान करना ।
ii.भुगतान संतुलन एवं अंतरराष्ट्रीय व्यापार के संतुलित विकास को सुनिश्चित करने के लिए दीर्धकालिक पूंजी निवेश को प्रेरित करना।
iii.निम्नलिखित तरीकों से सदस्य देशों में पूंजीगत निवेश को बढ़ावा देना–
क. निजी ऋणों या पूंजीगत निवेश पर गारंटी प्रदान करना। 
ख. यदि गारंटी प्रदान करने के बाद भी पूंजी उपलब्ध नहीं होती तब आईबीआरडी कुछ  शर्तों के आधार पर उत्पादक गतिविधियों के लिए ऋण प्रदान करता है।
iv.युद्ध के समय से शांतिपूर्ण अर्थव्यवस्था में सहज स्थांतरण हेतु विकास परियोजनाओं के कार्यान्वयन को सुनिश्चित करना।
विश्व बैंक का पूंजी संसाधनः-
विश्व बैंक की आरंभिक अधिकृत पूंजी 10,000 मिलियन डॉलर थी जिसे 1 डॉलर मूल्य के एक लाख शेयरों में बांटा गया था। विश्व बैंक की अधिकृत पूंजी 24 बिलियन डॉलर से बढ़कर 27 बिलियन डॉलर हो चुकी है। सदस्य देश विश्व बैंक के शेयर का पुनर्भुगतान इस प्रकार करते हैं–
i.आवंटित शेयर का सिर्फ 2% सोना, अमेरिकी डॉलर या एसडीआर में चुकाया जाता है।
ii.प्रत्येक सदस्य देश अपने पूंजीगत शेयर के 18% का पुनर्भुगतान अपनी मुद्रा में करने को स्वतंत्र है।
iii.बाकी का 80% विश्व बैंक की मांग पर सदस्य देश द्वारा जमा कराया जाता है।
विश्व बैंक के कार्य:-
वर्तमान में विश्व बैंक सदस्य देशों खासकर विकासशील देशों में, विकास कार्यों के लिए ऋण मुहैया कराने में मुख्य भूमिका निभा रहा है। बैंक विभिन्न विकास परियोजनाओं के लिए 5 से 20 वर्ष की अवधि के लिए ऋण मुहैया कराता है। 
i.बैंक सदस्य देशों को उसके शेयर के 20% तक प्रदत्त पूंजी के रूप में ऋण दे सकता है।
ii.बैंक सदस्यों से संबंधित निजी निवेशकों को अपनी खुद की गारंटी पर ऋण प्रदान करते हैं लेकिन निजी निवेशकों को अपने मूल देश से इसके लिए अनुमति लेने की जरूरत होती है। बैंक बतौर सेवा शुल्क 1% से 2% भी सदस्य देशों से लेता हैं। 
iii.ऋण सेवा, ब्याज दर, शर्तें और नियम के बारे में फैसला विश्व बैंक खुद करता है।
iv.आमतौर पर बैंक एक खास परियोजना के लिए ऋण प्रदान करता है जिसकी विधिवत प्रस्तुति सदस्य देश द्वारा बैंक में की जाती है।
v.ऋण लेने वाले देश को ऋण का पुनर्भुगतान या तो आरक्षित मुद्रा या जिस मुद्रा में ऋण मंजूर किया गया था, उसमें करना होता है।
विश्व बैंक और भारत:-
भारत ने गरीबी को कम करने, बुनियादी ढांचा और ग्रामीण विकास आदि जैसे क्षेत्रों में चलाए जाने वाली अलग– अलग परियोजनाओं के लिए विश्व बैंक से ऋण लिया है। आईडीए से मिलना वाला पैसा भारत सरकार के लिए सबसे रियायती बाहरी ऋणों में से एक है और सहस्राब्दि विकास लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए चलाई जाने वाली सामाजिक क्षेत्र की परियोजनाओं में इसका बड़े पैमाने पर उपयोग किया जाता है। विश्व बैंक से भारत को सबसे पहला ऋण 1948 में 68 बिलियन अमेरिकी डॉलर का दिया गया था। विश्व बैंक का मार्च 2011 तक भारत के ऊपर बकाया ऋण 11.28 अमेरिकी डॉलर था और IDA का ऋण 27 बिलियन अमेरिकी डॉलर था।
विश्व बैंक सक्रियता का मूल्यांकन:-
विश्व बैंक ने अफ्रीका, एशिया और लातिन अमेरिका के विकासशील देशों को अपने ऋण का 75% दिया है जबकि यूरोप के विकसित देशों को सिर्फ 25%। लेकिन फिर भी ज्यादातर देश यही मानते हैं कि विकसित देशों का विश्व बैंक के ऊपर अधिक प्रभाव है क्योंकि ये देश इस बैंक की कुल संपत्ति में सबसे बड़े हिस्सेदार हैं I

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