अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय (आईसीजे) संयुक्त राष्ट्र (यूएन) का प्रमुख न्यायिक अंग है। यह संयुक्त राष्ट्र के चार्टर द्वारा जून 1945 में स्थापित किया गया था और इसने अप्रैल 1946 में काम करना शुरू किया था। न्यायालय का मुख्यालय हेग (नीदरलैंड) में शांति पैलेस में है। यह न्यायालय संयुक्त राष्ट्र के छः प्रमुख अंगों में से, एकमात्र ऐसा अंग है जो कि न्यूयॉर्क (संयुक्त राज्य अमेरिका) में स्थित नहीं है। इसका अधिवेशन छट्टियों को छोड़कर हमेशा चालू रहता है। न्यायालय के प्रशासनिक व्यय का भार संयुक्त राष्ट्र संघ उठाता है।
(अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय की हेग स्थित बिल्डिंग- शांति महल (पीस पैलस)
अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय में कितने न्यायधीश हैं (How Many judges are in International. Court)
अंतरराष्ट्रीय न्यायालय में 15 न्यायधीश हैं, जो संयुक्त राष्ट्र महासभा और सुरक्षा परिषद द्वारा नौ साल के कार्यकाल के लिए चुने जाते हैं और इनको दुबारा भी चुना जा सकता है, हर तीसरे साल इन 15 न्यायधीशों में से पांच दुबारा चुने जा सकते है. न्यायधीशों की नियुक्ति के संबंध में मुख्य शर्त यह होती है कि दो न्यायधीश एक देश से नहीं चुने जा सकते हैं . भारतीय जज के तौर पर यहां दलवीर भंडारी हैं, इनका कार्यकाल 2018 तक का है.
(अंतरराष्ट्रीय न्यायालय में 15 न्यायधीश, मामले की सुनवाई करते हुए)
अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय का न्याय क्षेत्र (Jurisdiction of the International. Court of Justice):
अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय की मदद इसके एक प्रशासनिक अंग "रजिस्ट्री" द्वारा की जाती है . न्यायालय का काम कानूनी विवादों का निपटारा करना और अधिकृत संयुक्त राष्ट्र के अंगों और विशेष एजेंसियों द्वारा उठाए कानूनी प्रश्नों पर राय देना है. यानी इसके दो ख़ास कर्तव्य हैं: अंतरराष्ट्रीय क़ानून के अनुसार यह कानूनी विवादों पर निर्णय लेता है, दो पक्षों के बीच विवाद पर फैसले सुनाता है और संयुक्त राष्ट्र की इकाइयों के अनुरोध पर राय देता है. इसकी आधिकारिक भाषा अंग्रेजी और फ्रेंच हैं। संयुक्त राष्ट्र चार्टर के अनुच्छेद 93 में बताया गया है कि संयुक्त राष्ट्र के सभी 193 सदस्य इस न्यायालय से न्याय पाने का हक़ रखते हैं . हालांकि जो देश संयुक्त राष्ट्र के सदस्य नही हैं वे भी इस न्यायालय में न्याय पाने के लिये अपील कर सकते हैं .
अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय कैसे काम करता है (How Does International. Court Work)
अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय को अपनी मर्जी के हिसाब से नियम बनाने की शक्ति प्राप्त है. न्यायालय की न्यायिक प्रक्रिया, अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय नियमावली,1978 के अनुसार चलती है जिसे 29 सितंबर 2005 को संशोधित किया गया था .
अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय में किसी देश का कोई स्थायी प्रतिनिधि नहीं होता है. देश सामान्यतया अपने विदेश मंत्री के माध्यम से या नीदरलैंड में अपने राजदूत के माध्यम से रजिस्ट्रार से संपर्क करते हैं जो कि उन्हें कोर्ट में एक एजेंट के माध्यम से प्रतिनिधित्व प्रदान करता है. आवेदक को केस दर्ज करवाने से पहले न्यायालय के अधिकार क्षेत्र और अपने दावे के आधार पर एक लिखित आवेदन देना पड़ता है. प्रतिवादी (respondent) न्यायालय के अधिकार क्षेत्र को स्वीकार करता है और मामले की योग्यता के आधार पर अपना लिखित उत्तर दर्ज करवाता है.
(अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय में सार्वजनिक कार्यवाही का एक दृश्य)
इस न्यायालय में मामलों की सुनवाई सार्वजनिक रूप से तब तक होती है जब तक न्यायालय का आदेश अन्यथा न हो अर्थात यदि न्यायालय चाहे तो किसी मामले की सुनवाई बंद अदालत में भी कर सकता है. सभी प्रश्नों का निर्णय न्यायाधीशों के बहुमत से होता है। सभापति को निर्णायक मत देने का अधिकार है. न्यायालय का निर्णय अंतिम होता है, उसकी अपील नहीं हो सकती किंतु कुछ मामलों में पुनर्विचार हो सकता है.
(हरीश साल्वे भारत की ओर से अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय में कुलभूषण यादव मामले में बहस करते हुए)
अभी हाल ही अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय में भारत की ओर से दायर कुलभूषण यादव के मामले की सुनवाई हुई थी जिसमे अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय ने पाकिस्तान सरकार को आदेश दिया कि कुलभूषण को तब तक फांसी ना दी जाये जब तक कि सभी विकल्पों पर विचार ना कर लिया जाये.
इस प्रकार हमने पढ़ा कि अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय की कार्यप्रणाली काफी जटिल प्रकृति की है जिसमे न्याय पाने के लिए बहुत लम्बी प्रक्रिया से गुजरना पड़ता है. जटिल न्यायिक प्रक्रिया होने के बावजूद अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय विश्व में कई देशों के बीच पेचीदा मामलों को सुलझाकर शांति स्थापित करा चुका है, शायद यही कारण है कि इसके मुख्यालय का नाम 'शांति भवन' रखा गया है.