यह एक शीर्ष बैंकिग संस्था है जो कृषि और ग्रामीण विकास के लिए पूंजी उपलब्ध कराती है। राष्ट्रीय कृषि और ग्रामीण विकास बैंक (नाबार्ड) की स्थापना 12 जुलाई, 1982 को 100 करोड़ रूपये की प्रदत्त धनराशि के साथ की गई थी। 2010 में नाबार्ड की प्रदत्त राशि 2,000 करोड़ रुपए पर पहुंच गई। यह ग्रामीण ऋण संरचना की एक शीर्ष संस्था है जो कृषि, लघु उद्योगों, कुटीर एवं ग्रामोद्योग तथा हस्तशिल्प आदि को बढ़ावा देने के लिए ऋण उपलब्ध कराता है।
नाबार्ड को एक विकास बैंक के रूप में निम्नलिखित कार्य करने के लिए स्थापित किया गया था:
1. ग्रामीण क्षेत्रों में विभिन्न विकास गतिविधियों को बढ़ावा देने हेतु निवेश और उत्पादन ऋण प्रदान करने वाली संस्थाओं के लिए एक शीर्ष वित्तपोषण एजेंसी के रूप में कार्य करने के लिए;
2. निगरानी, पुनर्वास योजनाओं का निर्माण, ऋण संस्थाओं और कर्मियों के प्रशिक्षण के पुनर्गठन सहित ऋण वितरण प्रणाली के अवशोषण की क्षमता में सुधार लाने के लिए संस्थान निर्माण की दिशा में कदम उठाने हेतु;
3. जमीनी स्तर पर ग्रामीण विकास कार्यों में सभी वित्तीय गतिविधियों से से जुडे संस्थानों के साथ सांमजस्य स्थापित करना तथा नीति निर्माण से संबंधित भारत सरकार, राज्य सरकारों, रिजर्व बैंक और अन्य राष्ट्रीय स्तर के संस्थानों से संपर्क बनाए रखने के लिए;
4. स्वंय नाबार्ड द्वारा वित्तपोषित परियोजनाओं की निगरानी और मूल्यांकन का कार्य करने के लिए।
5. नाबार्ड एकीकृत ग्रामीण विकास कार्यक्रम (आईआरडीपी) के तहत गठित की गई परियोजनाओं को उच्च प्राथमिकता देता है।
6. यह एकीकृत ग्रामीण विकास कार्यक्रम के अंतर्गत चलाए जा रहे गरीबी उन्मूलन के कार्यक्रमों के लिए वित्त व्यवस्था का प्रबंधन करता है।
7. नाबार्ड अपने कार्यक्रमों के तहत होने वाली सामूहिक गतिविधियों को बढ़ावा देने के लिए दिशा निर्देश देता है और उनके लिए 100% पुनर्वित्त सहायता प्रदान करता है।
8. यह स्व-सहायता समूहों (SHGs) के बीच संबंधों को स्थापित करता है जिनका आयोजन गरीब और ग्रामीण क्षेत्रों में जरूरतमंद लोगों के लिए स्वैच्छिक एजेंसियों द्वारा किया जाता है।
9. यह उन परियोजनाओं के लिए पूरा रिफाइनेंस करता है जो 'नेशनल वाटरशेड डेवलेपमेंट प्रोगाम' और नेशनल मिशन ऑफ वेस्टलैंड डेवलेपमेंट के तहत संचालित हो रहे हैं।
10. यह "विकास वाहिनी" स्वयंसेवक कार्यक्रमों का भी समर्थन करता जो गरीब किसानों को ऋण और विकास गतिविधियों की पेशकश प्रदान करते हैं।
11. यह ग्रामीण वित्तपोषण तथा किसानों के कल्याण हेतु विकास को सुनिश्चित करने के लिए समय-समय पर सहकारी बैंकों और क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों का निरीक्षण भी करता है।
12. नाबार्ड, आरबीआई को क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों और सहकारी बैंकों के लिए लाइसेंस देने की भी सिफारिश करता है।
13. नाबार्ड उन विभिन्न संस्थाओं के कर्मचारियों को प्रशिक्षण और विकास सहायता प्रदान करता है जो ऋण वितरण से संबंधित होती हैं।
14. यह पूरे देश में कृषि और ग्रामीण विकास के लिए कार्यक्रम भी चलाता है।
15. यह सहकारी बैंकों और क्षेत्रीय ग्रामीण बैंक के नियमों से भी जुड़ा रहता है और देश भर में आयोजित IBPS परीक्षा के माध्यम से उनकी प्रतिभा के अधिग्रहण का प्रबंधन भी करता है।
नाबार्ड की भूमिका:
1. यह एक शीर्ष संस्था है जिसके पास ग्रामीण क्षेत्रों में कृषि और अन्य आर्थिक गतिविधियों के लिए ऋण देने के साथ साथ नीति से संबंधित सभी मामलों से निपटने की योजना बना करने की शक्ति है, जो एक शीर्ष संस्था है।
2. यह उन संस्थाओं के लिए एक रिफाइनेंसिंग एजेंसी है जो ग्रामीण विकास के लिए कई विकासात्मक कार्यक्रमों को बढ़ावा देने के लिए निवेश और उत्पादन ऋण प्रदान करते हैं।
3. यह भारत में निगरानी, पुनर्वास योजनाओं के निर्माण, ऋण संस्थाओं के पुनर्गठन, और कर्मियों के प्रशिक्षण सहित भारत में ऋण वितरण प्रणाली की क्षमता में सुधार करता है।
4. यह जमीनी स्तर पर विकास कार्यों में लगे संस्थानों के लिए सभी प्रकार की ग्रामीण वित्तपोषण गतिविधियों में सामंजस्य स्थापित करता है और नीति निर्माण से संबंधित भारत सरकार, राज्य सरकारों, और भारतीय रिजर्व बैंक तथा अन्य राष्ट्रीय संस्थाओं के साथ संपर्क बनाए रखता है।
5. यह देश के सभी जिलों के लिए सालाना ग्रामीण ऋण योजनाओं को तैयार करता है।
6. यह भी ग्रामीण क्षेत्रों में बैंकिंग के क्षेत्र में अनुसंधान, और कृषि तथा ग्रामीण विकास को बढ़ावा देता है।
नाबार्ड की गतिविधियों में कुछ मील के पत्थर हैं:
व्यापार का संचालन:
1. उत्पादक ऋण: नाबार्ड ने वर्ष 2012-13 के दौरान सहकारी बैंकों और क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों (आरआरबी) के लिए कुल मिलाकर 66,418 करोड़ रुपये के अल्पावधि ऋण को मंजूर किया जो 2012-13 के 65,176 करोड़ रुपये से अधिक था।
2. निवेश ऋण: कृषि तथा संबद्ध क्षेत्रों, गैर-कृषि क्षेत्र की गतिविधियों और वाणिज्यिक बैंकों, क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों तथा सहकारी बैंकों की सेवा क्षेत्र में 31 मार्च 2013 तक निवेश ऋण 17,674.29 करोड़ रुपये के स्तर पर पहुंच गया था जिसमें पिछले वर्ष के मुकाबले 14.6 फीसदी की वृद्धि दर्ज की गई थी।
3. ग्रामीण अवसंरचना विकास निधि (आरआईडीएफ): ग्रामीण अवसंरचना विकास निधि (आरआईडीएफ) के माध्यम से 2012-13 के दौरान 16,292.26 करोड़ रुपये वितरित किए गये थे। सिंचाई सहित ग्रामीण सड़कों और पुलों, स्वास्थ्य और शिक्षा, मृदा संरक्षण, पेयजल योजनाओं, बाढ़ सुरक्षा, वन प्रबंधन आदि सहित 5.08 लाख परियोजनाओं के लिए 31 मार्च, 2013 तक 1,62,083 करोड़ रुपये का संचयी राशि मंजूरी की गई थी।
नए व्यापार की पहल:
नाबार्ड इन्फ्रास्ट्रक्चर डेवलेपमेंट असिस्टेंट (नीडा):
नाबार्ड ने ग्रामीण बुनियादी ढांचे की परियोजनाओं के वित्त पोषण हेतु ऋण सहायता के लिए नीडा नाम की एक नई शुरुआत की गई है। वर्ष 2012-13 के दौरान नीडी के तहत 2,818.46 करोड़ रुपये मंजूर किए गए थे और 859.70 करोड़ रुपये का वितरण किया गया था।
अन्त में यह निष्कर्ष निकलता है कि नाबार्ड की क्षमता पर कृषि एवं ग्रामीण विकास अर्थव्यवस्था पूरी तरह से निर्भर है, जो आवश्यकताओं के अनुसार अपना कार्य कर रहा है।