शैडो बैंकिंग क्या होती है और यह अर्थव्यवस्था को कैसे प्रभावित करती है?

 शैडो बैंकिंग किसे कहते है?'शैडो बैंकिंग' शब्द 2007 में 'पॉल मैकक्लिली' ने अमेरिकी गैर-बैंक वित्तीय संस्थानों के संदर्भ में दिया थाl शैडो बैंकिंग से तात्पर्य गैर-बैकिंग वित्तीय कम्पनियों (NBFCs) द्वारा बैंकों जैसी सेवाएं देने से होता है जिससे ऐसी कम्पनियां बैंकिंग नियामक (banking regulations) कार्रवाइयों की परिधि से भी बाहर रहती हैं। ऐसी कम्पनियां अधिकांशत: निवेशकों और कर्जदारों के बीच बिचौलिए का काम करती हैं। इस प्रकार की बैंकिंग करने के लिए जिम्मेदार होते हैं : निवेश बैंक, म्यूचुअल फंड , हेज फंड , प्राइवेट इक्विटी और साहूकार इत्यादि आते हैंl चूंकि ये संस्थाएं बैंकिंग रेगुलेशन एक्ट, 1934 के अंतर्गत नही आते हैं इसलिए ये मौद्रिक नीति के क्रियान्वयन को अप्रभावी बनाते हैं और इसके कारण देश की बैंकिंग प्रणाली कमजोर होती है l

अंतरराष्ट्रीय स्तर पर वित्तीय प्राधिकरणों के बीच समन्वय का काम करने वाली संस्था फाइनेंशियल स्टेबिलिटी बोर्ड ने शैडो बैंकिंग के बारे में बताते हुए कहा है कि "बैंकिंग सिस्टम के बाहर जो लोग या संस्थान वित्तीय लेन-देन करते हैं, उन्हें शैडो बैंकिंग की श्रेणी में रखा जाता है।"
शैडो बैंकिंग देश की बैंकिंग व्यवस्था को कैसे असफल बनाती है?

इसको एक उदाहरण की सहायता से समझा जा सकता है: माना कि देश की अर्थव्यवस्था में मुद्रा की पूर्ती बढ़ जाती है इस कारण मुद्रास्फीति बढ़ रही और इस स्थिति को काबू में करने के लिए देश का केन्द्रीय बैंक RBI बैंक दर और रेपो रेट में बृद्धि कर देता है जिसके कारण अर्थव्यवस्था से अतिरिक्त मुद्रा की पूर्ती खींच ली जाती है और मुद्रा स्फीति कम हो जाती है लेकिन यदि किसी अर्थव्यवस्था में शैडो बैंकिंग करने वाली कंपनियों की संख्या बहुत अधिक है तो ये कम्पनियाँ लोगों को उस समय पैसे उधार दे देगीं जब देश की सबसे बड़ी मौद्रिक संस्था RBI ऐसा नही करना चाहती है, इससे अर्थव्यवस्था में मुद्रा पूर्ती में कोई कमी नही आयेगी; इस कारण RBI चाहकर भी बढती मुद्रा स्फीति की दशा को कंट्रोल नही कर पायेगी और इन शैडो बैंकिंग संस्थाओं के कारण देश की मौद्रिक नीति असफल हो जायेगी l
शैडो बैंकिंग का आकार
माना जा रहा है कि वर्ष 2007 से शैडो बैंकिंग का कारोबार 20 % की दर से बढ़ रहा है। फाइनेंशियल स्टेबिलिटी बोर्ड का कहना है कि 2002 में जहां शैडो बैंकिंग का आकार 26 लाख करोड़ डॉलर था, वहीं 2007 में यह 62 लाख करोड़ डॉलर का हो गया। हालांकि, वैश्विक वित्तीय संकट के चलते इसकी गतिविधियों में कुछ कमी आई है, लेकिन फिर भी साल 2011 में यह 67 लाख करोड़ डॉलर के स्तर पर पहुंच गया था । यह वैश्विक GDP के 111% के बराबर है।
NPA किसे कहते हैं और भारत में इसके बढ़ने के क्या कारण हैं?

भारतीय रिजर्व बैंक के डिप्टी गवर्नर आनंद सिन्हा ने कुछ महीनों पहले कहा था कि देश में शैडो बैंकिंग संपत्तियां GDP की 21% हैं, जबकि बैंकिंग संपत्तियां GDP की 86% हैं। ज्ञातब्य है कि भारत में करीब 12,000 गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियां (NBFIs) रिजर्व बैंक द्वारा पंजीकृत हैंl
सारांश रूप में यह कहा जा सकता है कि भारत में शैडो बैंकिंग या गैर बैंकिंग वित्तीय संस्थान काफी बड़ी संख्या में रिज़र्व बैंक के पास पंजीकृत हैं और देश की अर्थव्यवस्था में एक बड़ी भूमिका निभा रही हैं l अब जरुरत इस बात की है कि RBI इन संस्थाओं की कार्यप्रणाली पर नजर रखे ताकि इन संस्थाओ का विकास देश के विकास में सहयोग करे ना कि असहयोग l
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