एक बेटे ने अपने पिता से पूछा, ‘पापा, ये सफल जीवन क्या होता है?’ यह बात सुन कर पिता अपने बेटे को छत पर पतंग उड़ाने ले गये. बेटा अपने पिता को ध्यान से पतंग उड़ाते देख रहा था. थोड़ी देर बाद बेटा बोला, ‘पापा, ये धागे की वजह से पतंग और ऊपर नहीं जा पा रही है. अगर हम इसे तोड़ दें, तो कैसा रहे? यह पतंग हवा में और ऊपर चली जायेगी. बेटे के मन की बात जान कर पिता ने धागा तोड़ दिया. पतंग थोड़ा-सा ऊपर गयी और उसके बाद लहरा कर नीचे आ गयी और दूर अनजान जगह पर जा कर गिर गयी. बेटा चिंतित हो उठा.
तब पिता ने बेटे को जीवन का दर्शन समझाया. ‘बेटा, जिंदगी में हमें अक्सर लगता है कि कुछ चीजें, जिनसे हम बंधे हैं, वे हमें और ऊपर जाने से रोक रही हैं. जैसे- घर, परिवार, अनुशासन, माता-पिता आदि. अक्सर हम उनसे आजाद होना चाहते हैं. हम सोचते हैं कि इनमें मुक्ति मिल जाये, तो हम और अधिक उन्मुक्त हो कर अपना जीवन जी पायेंगे. वास्तव में यही वो धागे होते हैं, जो हमें उस ऊंचाई पर बना के रखते हैं. इन धागों के बिना हम एक बार को ऊपर जायेंगे, लेकिन बाद में हमारा वही हश्र होगा, जो बिन धागे की पतंग का हुआ. इसलिए बेटा, यदि तुम ऊंचाइयों पर बने रहना चाहते हो, तो कभी भी इन धागों से रिश्ता मत तोड़ना.’ यह कहानी हर उस युवा को पढ़नी चाहिए, जो अपने घर के माहौल या माता-पिता, भाई-बहन से परेशान हो कर सोचते हैं कि इनसे बहुत दूर जायेंगे, तो ही हम ठीक से जीवन जी पायेंगे. पापा का बार-बार पूछना, घर कब आओगे? पढ़ाई कब करोगे? नौकरी तलाशो? मम्मी का बार-बार टोकना, ऐसे मत बोलो, खाना पूरा खत्म करो, ये कपड़े मत पहनो. भाई-बहन के साथ रोजाना कपड़ों, रिमोट और न जाने किन-किन चीजों को लेकर होने वाले झगड़ों को देख कर हम सोचते हैं कि ये सब हमारी आजादी को रोक रहे हैं. हम खुल कर जी नहीं पा रहे, लेकिन जब हम किसी तरह इनसे दूर भाग आते हैं और हर तरफ मतलबी लोग नजर आते हैं, तो हमें पता चलता है कि असली परिवार तो वहीं था, जिसे हम छोड़ आये.
बात पते की.. - धागे और पतंग जैसे जुड़ाव के सफल संतुलन से मिली हुई ऊंचाई को ही सफल जीवन कहते हैं. इसलिए परिवार की कीमत को समझें. - आप बाहरवालों के सामने बनावटी रूप में रह सकते हो, लेकिन घरवालों के सामने नहीं रह सकते. इसलिए वह आपको सही सुझाव देते हैं.