संदर्भ
चुनाव प्रक्रिया लोकतंत्र की पवित्र आत्मा मानी जाती है। आज़ादी के बाद बिना किसी भेदभाव के सभी वयस्कों को मतदान के अधिकार दिये गए। पहले चुनाव पेपर आधारित मतपत्रों (paper based ballots) द्वारा कराए जाते थे।
धीरे-धीरे चुनावों के दौरान विवाद, हिंसा और ‘बूथ कैप्चरिंग’ जैसी घटनाएँ बढ़ने लगीं। इसके अलावा मतदाताओं की बढ़ती संख्या की वज़ह से मतों की गिनती में भी अधिक समय लगने लगा।
इन परिस्थितियों में चुनावों के दौरान ईवीएम (electronic voting machine) के उपयोग का मार्ग प्रशस्त हुआ।
हालाँकि ईवीएम के प्रयोग के आरंभिक दिनों से ही इससे छेड़-छाड़ की संभावनाएँ व्यक्त की जाने लगी थीं।
आज वाद-प्रतिवाद-संवाद में के माध्यम से हम यह जानने का प्रयास करेंगे कि क्या सच में ईवीएम चुनावों में निष्पक्षता को प्रभावित कर रही है।
वाद
जैसा कि निर्वाचन आयोग का कहना है और हम सब जानते हैं कि ईवीएम बिना किसी इंटरनेट कनेक्शन के चलती है। अतः ईवीएम से छेड़-छाड़ तभी हो सकती है जब इसमें लगी हुई चीप बदल दी जाए।
आज जैसी परिस्थितियाँ हैं संभव है कि कुछ मशीनों से छेड़-छाड़ की जाती हो, लेकिन 15 से 20 प्रतिशत मत पाकर पार्टियाँ चुनाव जीत जाती हैं, वहाँ केवल कुछ मशीनों के साथ हुई छेड़-छाड़ भी चुनाव जीता सकती हैं।
दुनिया भर में देश बैलेट पेपर से होने वाले चुनावों की तरफ दोबारा लौट रहे हैं। क्योंकि ईवीएम से छेड़-छाड़ संभव है।
निर्वाचन आयोग द्वारा बार-बार यह दोहराया गया है कि ईवीएम के साथ छेड़-छाड़ संभव नहीं है।
लेकिन आज जिस तरह से सरकार द्वारा संवैधानिक संस्थाओं के कार्यक्षेत्र में हस्तक्षेप किया जा रहा है, ईवीएम को एकदम फूलप्रूफ बताने से परहेज़ करना होगा।
हाल ही में जिस ढंग से गुजरात विधानसभा चुनाव की तारीखें घोषित की गई हैं, वह संवैधानिक संस्थाओं को सरकार द्वारा अपने प्रभाव में लिये जाने का ताज़ा उदाहरण है।
हमें समझना होगा कि ईवीएम भले ही ‘हैक’ नहीं की जा सकती, लेकिन इसमें छेड़-छाड़ तो संभव है, और यदि ऐसा हो रहा है तो यह शांति से की जाने वाली ‘बूथ कैप्चरिंग’ है।
ईवीएम को सुचारू रूप से प्रयोग में लाने के बाद अब एक दशक से भी अधिक का समय बीत चुका है।
अब वक्त है रुककर वर्तमान व्यवस्था का अवलोकन किया जाए और फिर से बैलेट पेपर से होने वाले चुनावों की तरफ लौटा जाए।
प्रतिवाद
स्वतंत्र, निष्पक्ष और सुचारू ढंग से चुनाव सुनिश्चितता की गारंटी संविधान द्वारा दी गई है।
ईवीएम द्वारा होने वाले चुनाव भारत में लोकतांत्रिक प्रक्रिया को और मज़बूत बनाने के दिशा में बढ़ाया गया एक कदम है।
विधानसभा चुनावों के पिछले 30 वर्षों के आँकड़ों का विश्लेषण करने वाली एक रिपोर्ट के अनुसार:
► ईवीएम के प्रयोग से चुनावों के दौरान होने वाली धोखाधड़ी में महत्त्वपूर्ण गिरावट आई है।
► विशेष रूप से बिहार और उत्तर प्रदेश जैसे राजनीतिक रूप से संवेदनशील राज्यों में बड़े स्तर पर चुनाव निष्पक्ष रूप से संपन्न हुए हैं।
► बैलेट पेपर के ज़रिये होने वाले चुनावों में बूथ कैप्चरिंग समाज के कुछ सुविधा संपन्न वर्ग से संबंध रखने वाले लोगों द्वारा ही किया जाता था।
► अतः सत्ता में आने वाले राजनैतिक दल लगातार उसी समाज की भलाई के लिये कार्य करते थे।
► लेकिन अब ईवीएम के प्रयोग से उपेक्षित वर्गों की समस्याएँ सुनी भी जा रही हैं एवं उनका समाधान भी हो रहा है।
► नेता अब केवल विकास की बात नहीं कर सकते, उन्हें वास्तविक धरातल पर विकास के लिये प्रतिबद्ध होना पड़ा है।
ईवीएम के प्रयोग से महिलाओं तथा अनुसूचित जाति के लोगों की चुनावों में भागेदारी बढ़ी है।
अतः बैलेट पेपर के बजाय ईवीएम की मदद से ही चुनाव कराए जाने की व्यवस्था बनी रहनी चाहिये।
संवाद
चुनाव आयोग ने लगातार यह सुनिश्चित किया है कि ईवीएम मशीनें सही हैं और इनकी जाँच अंतर्राष्ट्रीय विशेषज्ञों द्वारा की गई है, जबकि कुछ आईआईटी प्रशिक्षित इंजीनियरों ने दिखाया है कि वास्तव में मशीनों को दूर से ही अन्य डिवाइसों की मदद से नियंत्रित किया जा सकता है।
यह तो तय है कि यदि एक बार ईवीएम के ज़रिये वोटिंग शुरू हो गई तो उसमें छेड़-छाड़ असंभव सा है, तो क्या मशीनों के साथ पहले से छेड़-छाड़ की जाती हैं?
दरअसल, इतने सालों में अब पहली बार निर्वाचन आयोग को सत्ता पक्ष में झुका हुआ बताया जा रहा है। यदि ऐसा है तो यह भारतीय लोकतंत्र के लिये शुभ संकेत नहीं है।
हालाँकि, चुनाव आयोग द्वारा आगामी लोकसभा और विधानसभा चुनावों में वीवीपीएटी मशीनों का उपयोग करने का निर्देश दिया गया है।
विदित हो
कि अब ईवीएम मशीनों की मदद से भविष्य में होने वाले चुनावों में अब वीवीपीएटी (Voter-Verifiable Paper Audit Trail) मशीन का उपयोग किया जाएगा, जो कि ईवीएम कितनी सही है यह निर्णित करेगी।
वीवीपीएटी मशीन क्या है और यह कैसे काम करती है?
► वोटर वेरीफाइड पेपर ऑडिट ट्रेल यानी वीवीपीएटी एक प्रकार की मशीन होती है, जिसे ईवीएम के साथ जोड़ा जाता है।
► यह मशीन वोट डाले जाने की पुष्टि करती है और इससे मतदान की पुष्टि की जा सकती है।
► इस मशीन को भारत इलेक्ट्रॉनिक्स लिमिटेड और इलेक्ट्रॉनिक कॉरपोरेशन ऑफ इंडिया लिमिटेड द्वारा डिज़ाइन किया गया था।
► वीवीपीएटी के साथ प्रिंटर की तरह का एक उपकरण इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन से जुड़ा होता है।
► इसके तहत इसमें मतदाता द्वारा उम्मीदवार के नाम का बटन दबाते ही उस उम्मीदवार के नाम और राजनीतिक दल के चिन्ह की पर्ची अगले दस सेकेंड में मशीन से बाहर निकल जाती है।
► इसके बाद यह एक सुरक्षित बक्से में गिर जाती है। पर्ची एक बार दिखने के बाद ईवीएम से जुड़े कंटेनर में चली जाती है।
► ईवीएम में लगे शीशे के एक स्क्रीन पर यह पर्ची सात सेकेंड तक दिखती है। वीवीपीएटी का सबसे पहले प्रयोग 2013 में नागालैंड के निर्वाचन में किया गया था।
► वीवीपीएटी की मदद से प्रत्येक मत से संबंधित जानकारियों को प्रिंट करके मशीन में स्टोर कर लिया जाता है और विवाद की स्थिति में इस जानकारी की मदद से इन विवादों का निपटारा किया जा सकता है।
निष्कर्ष
क्या संभव है ईवीएम को हैक करना?
► विदित हो ईवीएम के सॉफ्टवेयर की सुरक्षा के बारे में विनिर्माता के स्तर पर कड़ा सुरक्षा प्रोटोकोल लागू किया गया है।
► ये मशीनें 2006 से लगातार अलग-अलग वर्षों में विनिर्मित की जा रही हैं। विनिर्माण के बाद ई.वी.एम. को राज्य और किसी राज्य के भीतर ज़िले से ज़िले में भेजा जाता है।
► ऐसी स्थिति में विनिर्माता मशीनों के साथ-साथ सिर्फ इसलिये नहीं घूम सकते हैं कि वे इस बात का पता लगा सकें कि कौन सा उम्मीदवार किस निर्वाचन क्षेत्र से चुनाव लड़ेगा और बैलेट यूनिट में उम्मीदवारों की सीक्वेंस क्या होगी।
► इतना ही नहीं, प्रत्येक ई.सी.आई-ई.वी.एम. का एक सीरियल नम्बर होता है और निर्वाचन आयोग ई.वी.एम-ट्रैकिंग सॉफ्टवेयर का इस्तेमाल करके अपने डेटा बेस से यह पता लगा सकता है कि कब किस समय कौन सी मशीन कहाँ पर है।
► अतः विनिर्माण के स्तर पर हेराफेरी की कोई गुंजाइश संभव ही नहीं है।
क्यों ईवीएम के साथ छेड़-छाड़ कठिन है?
► गौरतलब है कि जब कंट्रोल यूनिट में कोई बैलेट ‘की-प्रेस’ की जाती है, तो कंट्रोल यूनिट, बैलेट यूनिट को वोट रजिस्टर करने की अनुमति देती है और बैलेट यूनिट में ‘की-प्रेस’ होने का इंतजार करती है।
► इस अवधि के दौरान कंट्रोल यूनिट में सभी ‘की’, उस वोट के कास्ट होने की समूची सीक्वेंस पूरा होने तक निष्क्रिय हो जाती हैं।
► किसी मतदाता द्वारा मशीन में मौजूद सभी ‘कीज़’ (उम्मीदवारों के वोट बटन) में से कोई एक ‘की’ (KEY) दबाने के बाद बैलेट यूनिट उस ‘की’ से संबंधित जानकारी कंट्रोल यूनिट को ट्रांसफर करती है।
► कंट्रोल यूनिट को डेटा प्राप्त होता है और वह तत्क्षण बैलेट यूनिट में एल.ई.डी. लैंप की चमक के साथ उसकी प्राप्ति स्वीकार करती है। कंट्रोल यूनिट में बैलेट को सक्षम करने के बाद केवल ‘प्रथम प्रेस की गई ‘की’’ को कंट्रोल यूनिट द्वारा स्वीकार कर लिया जाता है।
► इसके बाद, भले ही कोई मतदाता अन्य बटनों को दबाता रहे, उसका कोई असर नहीं होता है, क्योंकि बाद में दबाए गए बटनों के परिणामस्वरूप कंट्रोल यूनिट और बैलेट यूनिट के बीच कोई कम्युनिकेशन नहीं होता है और न ही बैलेट यूनिट किसी ‘की-प्रेस’ को रजिस्टर करती है।
अतः वर्तमान में देश में इस्तेमाल की जा रही इलेक्ट्रोनिक वोटिंग मशीनों में तथाकथित ‘सीक्वेंस्ड की प्रेसिज़’ यानी ‘सिलसिलेवार बटन दबाने’ के ज़रिये दुर्भावनापूर्ण संकेत भेजना संभव नहीं है।
जहाँ तक अन्य देशों द्वारा ईवीएम का प्रयोग बंद करने का प्रश्न है तो इन देशों में मशीनों के साथ समस्या यह थी कि वे कंप्यूटर द्वारा नियंत्रित थी। जिसके कारण उनके हैक होने की आशंका बहुत अधिक थी।
लोकतंत्र में निष्पक्ष और व्यवधान रहित चुनाव अत्यंत ही महत्त्वपूर्ण है और यही कारण है कि हमने बैलेट पेपर का त्याग किया है। वर्तमान में फिर से उसी व्यवस्था को अपनाए जाने का कोई ठोस आधार नज़र नहीं आता।
यदि ईवीएम भी चुनावों के दौरान निष्पक्षता सुनिश्चित नहीं करा पा रहा तो इसके विकल्प के तौर पर बैलेट पेपर की तरफ देखने के बजाय अन्य विकल्प आजमाए जाने चाहिये।
चुनाव प्रक्रिया लोकतंत्र की पवित्र आत्मा मानी जाती है। आज़ादी के बाद बिना किसी भेदभाव के सभी वयस्कों को मतदान के अधिकार दिये गए। पहले चुनाव पेपर आधारित मतपत्रों (paper based ballots) द्वारा कराए जाते थे।
धीरे-धीरे चुनावों के दौरान विवाद, हिंसा और ‘बूथ कैप्चरिंग’ जैसी घटनाएँ बढ़ने लगीं। इसके अलावा मतदाताओं की बढ़ती संख्या की वज़ह से मतों की गिनती में भी अधिक समय लगने लगा।
इन परिस्थितियों में चुनावों के दौरान ईवीएम (electronic voting machine) के उपयोग का मार्ग प्रशस्त हुआ।
हालाँकि ईवीएम के प्रयोग के आरंभिक दिनों से ही इससे छेड़-छाड़ की संभावनाएँ व्यक्त की जाने लगी थीं।
आज वाद-प्रतिवाद-संवाद में के माध्यम से हम यह जानने का प्रयास करेंगे कि क्या सच में ईवीएम चुनावों में निष्पक्षता को प्रभावित कर रही है।
वाद
जैसा कि निर्वाचन आयोग का कहना है और हम सब जानते हैं कि ईवीएम बिना किसी इंटरनेट कनेक्शन के चलती है। अतः ईवीएम से छेड़-छाड़ तभी हो सकती है जब इसमें लगी हुई चीप बदल दी जाए।
आज जैसी परिस्थितियाँ हैं संभव है कि कुछ मशीनों से छेड़-छाड़ की जाती हो, लेकिन 15 से 20 प्रतिशत मत पाकर पार्टियाँ चुनाव जीत जाती हैं, वहाँ केवल कुछ मशीनों के साथ हुई छेड़-छाड़ भी चुनाव जीता सकती हैं।
दुनिया भर में देश बैलेट पेपर से होने वाले चुनावों की तरफ दोबारा लौट रहे हैं। क्योंकि ईवीएम से छेड़-छाड़ संभव है।
निर्वाचन आयोग द्वारा बार-बार यह दोहराया गया है कि ईवीएम के साथ छेड़-छाड़ संभव नहीं है।
लेकिन आज जिस तरह से सरकार द्वारा संवैधानिक संस्थाओं के कार्यक्षेत्र में हस्तक्षेप किया जा रहा है, ईवीएम को एकदम फूलप्रूफ बताने से परहेज़ करना होगा।
हाल ही में जिस ढंग से गुजरात विधानसभा चुनाव की तारीखें घोषित की गई हैं, वह संवैधानिक संस्थाओं को सरकार द्वारा अपने प्रभाव में लिये जाने का ताज़ा उदाहरण है।
हमें समझना होगा कि ईवीएम भले ही ‘हैक’ नहीं की जा सकती, लेकिन इसमें छेड़-छाड़ तो संभव है, और यदि ऐसा हो रहा है तो यह शांति से की जाने वाली ‘बूथ कैप्चरिंग’ है।
ईवीएम को सुचारू रूप से प्रयोग में लाने के बाद अब एक दशक से भी अधिक का समय बीत चुका है।
अब वक्त है रुककर वर्तमान व्यवस्था का अवलोकन किया जाए और फिर से बैलेट पेपर से होने वाले चुनावों की तरफ लौटा जाए।
प्रतिवाद
स्वतंत्र, निष्पक्ष और सुचारू ढंग से चुनाव सुनिश्चितता की गारंटी संविधान द्वारा दी गई है।
ईवीएम द्वारा होने वाले चुनाव भारत में लोकतांत्रिक प्रक्रिया को और मज़बूत बनाने के दिशा में बढ़ाया गया एक कदम है।
विधानसभा चुनावों के पिछले 30 वर्षों के आँकड़ों का विश्लेषण करने वाली एक रिपोर्ट के अनुसार:
► ईवीएम के प्रयोग से चुनावों के दौरान होने वाली धोखाधड़ी में महत्त्वपूर्ण गिरावट आई है।
► विशेष रूप से बिहार और उत्तर प्रदेश जैसे राजनीतिक रूप से संवेदनशील राज्यों में बड़े स्तर पर चुनाव निष्पक्ष रूप से संपन्न हुए हैं।
► बैलेट पेपर के ज़रिये होने वाले चुनावों में बूथ कैप्चरिंग समाज के कुछ सुविधा संपन्न वर्ग से संबंध रखने वाले लोगों द्वारा ही किया जाता था।
► अतः सत्ता में आने वाले राजनैतिक दल लगातार उसी समाज की भलाई के लिये कार्य करते थे।
► लेकिन अब ईवीएम के प्रयोग से उपेक्षित वर्गों की समस्याएँ सुनी भी जा रही हैं एवं उनका समाधान भी हो रहा है।
► नेता अब केवल विकास की बात नहीं कर सकते, उन्हें वास्तविक धरातल पर विकास के लिये प्रतिबद्ध होना पड़ा है।
ईवीएम के प्रयोग से महिलाओं तथा अनुसूचित जाति के लोगों की चुनावों में भागेदारी बढ़ी है।
अतः बैलेट पेपर के बजाय ईवीएम की मदद से ही चुनाव कराए जाने की व्यवस्था बनी रहनी चाहिये।
संवाद
चुनाव आयोग ने लगातार यह सुनिश्चित किया है कि ईवीएम मशीनें सही हैं और इनकी जाँच अंतर्राष्ट्रीय विशेषज्ञों द्वारा की गई है, जबकि कुछ आईआईटी प्रशिक्षित इंजीनियरों ने दिखाया है कि वास्तव में मशीनों को दूर से ही अन्य डिवाइसों की मदद से नियंत्रित किया जा सकता है।
यह तो तय है कि यदि एक बार ईवीएम के ज़रिये वोटिंग शुरू हो गई तो उसमें छेड़-छाड़ असंभव सा है, तो क्या मशीनों के साथ पहले से छेड़-छाड़ की जाती हैं?
दरअसल, इतने सालों में अब पहली बार निर्वाचन आयोग को सत्ता पक्ष में झुका हुआ बताया जा रहा है। यदि ऐसा है तो यह भारतीय लोकतंत्र के लिये शुभ संकेत नहीं है।
हालाँकि, चुनाव आयोग द्वारा आगामी लोकसभा और विधानसभा चुनावों में वीवीपीएटी मशीनों का उपयोग करने का निर्देश दिया गया है।
विदित हो
कि अब ईवीएम मशीनों की मदद से भविष्य में होने वाले चुनावों में अब वीवीपीएटी (Voter-Verifiable Paper Audit Trail) मशीन का उपयोग किया जाएगा, जो कि ईवीएम कितनी सही है यह निर्णित करेगी।
वीवीपीएटी मशीन क्या है और यह कैसे काम करती है?
► वोटर वेरीफाइड पेपर ऑडिट ट्रेल यानी वीवीपीएटी एक प्रकार की मशीन होती है, जिसे ईवीएम के साथ जोड़ा जाता है।
► यह मशीन वोट डाले जाने की पुष्टि करती है और इससे मतदान की पुष्टि की जा सकती है।
► इस मशीन को भारत इलेक्ट्रॉनिक्स लिमिटेड और इलेक्ट्रॉनिक कॉरपोरेशन ऑफ इंडिया लिमिटेड द्वारा डिज़ाइन किया गया था।
► वीवीपीएटी के साथ प्रिंटर की तरह का एक उपकरण इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन से जुड़ा होता है।
► इसके तहत इसमें मतदाता द्वारा उम्मीदवार के नाम का बटन दबाते ही उस उम्मीदवार के नाम और राजनीतिक दल के चिन्ह की पर्ची अगले दस सेकेंड में मशीन से बाहर निकल जाती है।
► इसके बाद यह एक सुरक्षित बक्से में गिर जाती है। पर्ची एक बार दिखने के बाद ईवीएम से जुड़े कंटेनर में चली जाती है।
► ईवीएम में लगे शीशे के एक स्क्रीन पर यह पर्ची सात सेकेंड तक दिखती है। वीवीपीएटी का सबसे पहले प्रयोग 2013 में नागालैंड के निर्वाचन में किया गया था।
► वीवीपीएटी की मदद से प्रत्येक मत से संबंधित जानकारियों को प्रिंट करके मशीन में स्टोर कर लिया जाता है और विवाद की स्थिति में इस जानकारी की मदद से इन विवादों का निपटारा किया जा सकता है।
निष्कर्ष
क्या संभव है ईवीएम को हैक करना?
► विदित हो ईवीएम के सॉफ्टवेयर की सुरक्षा के बारे में विनिर्माता के स्तर पर कड़ा सुरक्षा प्रोटोकोल लागू किया गया है।
► ये मशीनें 2006 से लगातार अलग-अलग वर्षों में विनिर्मित की जा रही हैं। विनिर्माण के बाद ई.वी.एम. को राज्य और किसी राज्य के भीतर ज़िले से ज़िले में भेजा जाता है।
► ऐसी स्थिति में विनिर्माता मशीनों के साथ-साथ सिर्फ इसलिये नहीं घूम सकते हैं कि वे इस बात का पता लगा सकें कि कौन सा उम्मीदवार किस निर्वाचन क्षेत्र से चुनाव लड़ेगा और बैलेट यूनिट में उम्मीदवारों की सीक्वेंस क्या होगी।
► इतना ही नहीं, प्रत्येक ई.सी.आई-ई.वी.एम. का एक सीरियल नम्बर होता है और निर्वाचन आयोग ई.वी.एम-ट्रैकिंग सॉफ्टवेयर का इस्तेमाल करके अपने डेटा बेस से यह पता लगा सकता है कि कब किस समय कौन सी मशीन कहाँ पर है।
► अतः विनिर्माण के स्तर पर हेराफेरी की कोई गुंजाइश संभव ही नहीं है।
क्यों ईवीएम के साथ छेड़-छाड़ कठिन है?
► गौरतलब है कि जब कंट्रोल यूनिट में कोई बैलेट ‘की-प्रेस’ की जाती है, तो कंट्रोल यूनिट, बैलेट यूनिट को वोट रजिस्टर करने की अनुमति देती है और बैलेट यूनिट में ‘की-प्रेस’ होने का इंतजार करती है।
► इस अवधि के दौरान कंट्रोल यूनिट में सभी ‘की’, उस वोट के कास्ट होने की समूची सीक्वेंस पूरा होने तक निष्क्रिय हो जाती हैं।
► किसी मतदाता द्वारा मशीन में मौजूद सभी ‘कीज़’ (उम्मीदवारों के वोट बटन) में से कोई एक ‘की’ (KEY) दबाने के बाद बैलेट यूनिट उस ‘की’ से संबंधित जानकारी कंट्रोल यूनिट को ट्रांसफर करती है।
► कंट्रोल यूनिट को डेटा प्राप्त होता है और वह तत्क्षण बैलेट यूनिट में एल.ई.डी. लैंप की चमक के साथ उसकी प्राप्ति स्वीकार करती है। कंट्रोल यूनिट में बैलेट को सक्षम करने के बाद केवल ‘प्रथम प्रेस की गई ‘की’’ को कंट्रोल यूनिट द्वारा स्वीकार कर लिया जाता है।
► इसके बाद, भले ही कोई मतदाता अन्य बटनों को दबाता रहे, उसका कोई असर नहीं होता है, क्योंकि बाद में दबाए गए बटनों के परिणामस्वरूप कंट्रोल यूनिट और बैलेट यूनिट के बीच कोई कम्युनिकेशन नहीं होता है और न ही बैलेट यूनिट किसी ‘की-प्रेस’ को रजिस्टर करती है।
अतः वर्तमान में देश में इस्तेमाल की जा रही इलेक्ट्रोनिक वोटिंग मशीनों में तथाकथित ‘सीक्वेंस्ड की प्रेसिज़’ यानी ‘सिलसिलेवार बटन दबाने’ के ज़रिये दुर्भावनापूर्ण संकेत भेजना संभव नहीं है।
जहाँ तक अन्य देशों द्वारा ईवीएम का प्रयोग बंद करने का प्रश्न है तो इन देशों में मशीनों के साथ समस्या यह थी कि वे कंप्यूटर द्वारा नियंत्रित थी। जिसके कारण उनके हैक होने की आशंका बहुत अधिक थी।
लोकतंत्र में निष्पक्ष और व्यवधान रहित चुनाव अत्यंत ही महत्त्वपूर्ण है और यही कारण है कि हमने बैलेट पेपर का त्याग किया है। वर्तमान में फिर से उसी व्यवस्था को अपनाए जाने का कोई ठोस आधार नज़र नहीं आता।
यदि ईवीएम भी चुनावों के दौरान निष्पक्षता सुनिश्चित नहीं करा पा रहा तो इसके विकल्प के तौर पर बैलेट पेपर की तरफ देखने के बजाय अन्य विकल्प आजमाए जाने चाहिये।