विश्व
पर्यावरण दिवस 2018 की वैश्विक मेजबानी भारत को प्राप्त हुई है। ‘बीट प्लास्टिक
पॉल्यूशन’ की थीम के साथ यह दिवस विश्व भर में पर्यावरण प्रदूषण एवं अन्य प्रकार
के खतरों के प्रति जागरूकता प्रदान करेगा।
विश्व
पर्यावरण दिवस की पूर्व संध्या पर राज्य पर्यावरण मंत्रियों के सम्मेलन में
उद्घाटन संबोधन देते हुए पर्यावरण मंत्री डॉ.हर्षवर्धन ने बताया कि पर्यावरण
मंत्रालय में कई विशेष प्रकार के मूलभूत परिवर्तन किए गए हैं और राज्यों को
अधिकार सौंपे गए हैं। इसके साथ विभिन्न प्रकार की योजनाएं, कार्यक्रम और नीतियां
पर्यावरण संरक्षण के लिए सरकार द्वारा धरातल पर लायी जा रही हैं।
आइये भारत की प्रमुख पर्यावरण नीतियों और कार्यक्रमों को जानें:
वर्ष 1972
के स्टॉकहोम सम्मेलन ने भारत सरकार का ध्यान पर्यावरण संरक्षण की ओर खींचा। सरकार
ने 1976 में संविधान में संशोधन कर दो महत्त्वपूर्ण अनुच्छेद 48 ए तथा 51 ए (जी)
जोड़ें।
अनुच्छेद
48 ए राज्य सरकार को निर्देश देता है कि वह ‘पर्यावरण की सुरक्षा और उसमें सुधार
सुनिश्चित करे, तथा देश के वनों तथा वन्यजीवन की रक्षा करे’। अनुच्छेद 51 ए (जी)
नागरिकों को कर्तव्य प्रदान करता है कि वे ‘प्राकृतिक पर्यावरण की रक्षा करे तथा
उसका संवर्धन करे और सभी जीवधारियों के प्रति दयालु रहे’।
स्वतंत्रता
के पश्चात बढते औद्योगिकरण, शहरीकरण तथा जनसंख्या वृद्धि से पर्यावरण की गुणवत्ता
में निरंतर कमी आती गई। पर्यावरण की गुणवत्ता की इस कमी में प्रभावी नियंत्रण व प्रदूषण
के परिप्रेक्ष्य में सरकार ने समय-समय पर अनेक कानून व नियम बनाए। इनमें से
अधिकांश का मुख्य आधार प्रदूषण नियंत्रण व निवारण था।
प्रमुख पर्यावरणीय कानून व नियम निम्नलिखित हैं:
- जल (प्रदूषण निवारण एवं नियंत्रण )
अधिनियम, 1974
- पर्यावरण (संरक्षण) अधिनियम, 1986
- वायु (प्रदूषण निवारण एवं नियंत्रण )
अधिनियम, 1981
- फोरेस्टस कंजरवेशन एक्ट, 1960
- वाइल्ड लाईफ प्रोटेक्शन एक्ट, 1972
- फोरेस्ट (कनजरवेशन) एक्ट, 1980
- वाइल्ड लाईफ (प्रोटेक्शन) एक्ट, 1995
- जैव-विविधता अधिनियम, 2002
- राष्ट्रीय पर्यावरण नीति – 2006
राष्ट्रीय पर्यावरण नीति 2006:
राष्ट्रीय
पर्यावरण नीति विभिन्न नीतियों (राष्ट्रीय वन नीति, 1988; राष्ट्रीय संरक्षण
रणनीति तथा पर्यावरण एवं विकास पर नीतिगत वक्तव्य, 1992; तथा प्रदूषण निवारण पर
नीतिगत वक्तव्य, 1992; राष्ट्रीय कृषि नीति, 2000; राष्ट्रीय जनसंख्या नीति, 2000;
राष्ट्रीय जल नीति, 2002 इत्यादि) का एकीकरण करती है।
नियामकीय
सुधार, पर्यावरणीय संरक्षण कार्यक्रम एवं परियोजना, केंद्र, राज्य व स्थानीय सरकार
द्वारा कानूनों के पुनरावलोकन एवं उसके कार्यान्वयन में, इसकी भूमिका मार्गदर्शन
देने की होगी।
इस नीति
की मुख्य विषयवस्तु है पर्यावरणीय संसाधनों का संरक्षण सबके कल्याण एवं आजीविका
सुनिश्चित करने हेतु आवश्यक है। अतः संरक्षण का सबसे मुख्य आधार यह होना चाहिए कि
किसी संसाधन पर निर्भर रहने वाले लोगों को संसाधन के निम्नीकरण की बजाय उसके
संरक्षण के द्वारा आजीविका के बेहतर अवसर प्राप्त हो सकें।
यह नीति
विभिन्न सहभागियों जैसे सरकारी अभिकरणों, स्थानीय समुदायों, अकादमिक एवं वैज्ञानिक
संस्थानों, निवेश समुदायों एवं अंतरराष्ट्रीय विकास सहयोगियों द्वारा उनसे संबद्ध
संसाधनों के उपयोग तथा पर्यावरण प्रबंधन के सशक्तीकरण हेतु उनकी भागीदारी को
प्रोत्साहित करती है।
टिप्पणी
वन अधिकार अधिनियम, 2006:
वन अधिकार
अधिनियम (2006), वन संबंधी नियमों का एक महत्वपूर्ण दस्तावेज है जो 18 दिसम्बर,
2006 को पास हुआ। यह कानून जंगलों में रह रहे लोगों के भूमि तथा प्राकृतिक
संसाधनों पर अधिकार से जुड़ा हुआ है जिनसे, औपनिवेशिक काल से ही उन्हें वंचित किया
हुआ था। इसका उद्देश्य जहां एक ओर वन संरक्षण है वहां दूसरी ओर यह जंगलों में रहने
वाले लोगों को उनके साथ सदियों तक हुए अन्याय की भरपाई का भी प्रयास है।
भारत ने
पर्यावरणीय कानूनों का व्यापक निर्माण किया है तथा हमारी नीतियाँ पर्यावरण संरक्षण
में भारत की पहल दर्शाती हैं। पर्यावरण संबंधी सभी विधेयक होने पर भी भारत में
पर्यावरण की स्थिति काफी गंभीर बनी हुई है। दिल्ली में यमुना नदी एक नाला बनकर रह
गई है।
वन
क्षेत्र में कटाव लगातार बढता जा रहा है जिसके परिणाम हमें हाल ही में बिहार में
आई भीषण बाढ़ के रूप में स्पष्ट देखने को मिलता है। भारत में जिस प्रकार से
पर्यावरण कानूनों केा लागू किया जा रहा है उसे देखते हुए लगता है कि इन कानूनो के
महत्त्व केा समझा ही नहीं गया है। इस दिशा में पर्यावरण नीतियों को गंभीरता से
लागू करने की आवश्यकता है। पर्यावरण को सुरक्षित करने के प्रयासों में आम जनता की
भागीदारी भी सुनिश्चित करने की जरूरत है।