भारत की पर्यावरण विविधता
और सम्पदा सार्वभौमिक रूप से पहचाने जाते हैं लेकिन कभी प्रमाणित नहीं किए जाते
हैं। इस साल से, सरकार देश की पर्यावरणीय संपदा के जिला स्तरीय आंकड़ों की गणना
करने के लिए पांच साल का अभ्यास शुरू करेगी।
प्रमुख तथ्य:
इन आंकड़ों का उपयोग मुख्य
रूप से प्रत्येक राज्य के 'हरित' सकल घरेलू उत्पाद (ग्रॉस डोमेस्टिक प्रोडक्ट) की
गणना के लिए किया जाएगा। यह गणना विभिन्न प्रकार के नीति निर्णयों में मदद प्रदान
करेगा जैसे भूमि अधिग्रहण के दौरान मुआवजे का भुगतान, जलवायु शमन के लिए आवश्यक धन
की गणना, आदि।
पहली बार देश में ऐसा
राष्ट्रीय पर्यावरण सर्वेक्षण किया जा रहा है। इस सितंबर माह में 54 जिलों में एक
पायलट परियोजना शुरू होगी। भूमि को "ग्रिड" में सीमांकित किया जाएगा और
प्रत्येक जिले में 15-20 ग्रिड होंगी।
ये राज्य के भूगोल, कृषि
भूमि, वन्यजीवन, और उत्सर्जन पैटर्न में विविधता की जानकारी प्राप्त करेंगे और
वैल्यू की गणना करने के लिए इनका उपयोग किया जाएगा।
इस योजना के लिए अभी तक
बजट का निर्धारण नहीं किया गया है।
केंद्र सरकार ने इसके
अतिरिक्त 'ग्रीन स्किलिंग' कार्यक्रम भी लॉन्च किया है। जिसके तहत युवा, विशेष रूप
से स्कूल छोड़ने युवाओं को 'हरित नौकरियों' के लिए प्रशिक्षित किया जाएगा।
ग्रीन जीडीपी:
हरित या ग्रीन जीडीपी आम
तौर पर पर्यावरणीय क्षति के समायोजन के बाद जीडीपी में व्यक्त करने के लिए प्रयोग
किया जाता है। इससे तात्पर्य यह है की सार्वजनिक और निजी निवेश करते समय इस बात को
ध्यान में रखा जाए कि कार्बन उत्सर्जन और प्रदूषण कम से कम हो, ऊर्जा और संसाधनों
की प्रभावोत्पादकता बढ़े और जो जैव विविधता और पर्यावरण प्रणाली की सेवाओं के
नुकसान कम करने में मदद करे।