'प्रोसीडिंग्स ऑफ द नेशनल एकेडमी ऑफ साइंसेज' (Proceedings of the National Academy of Sciences) में प्रकाशित अध्ययन में विभिन्न देशों के प्रति व्यक्ति जीडीपी का अध्ययन किया गया।
अध्ययन से यह देखा गया है कि जो लोग ग्लोबल वार्मिंग के लिए कम से कम जिम्मेदार हैं, उन्हें सबसे अधिक कठिनाई होगी। पिछले 50 वर्षों में गरीब लोगों की संख्या में तेजी से वृद्धि हुई है, और सामाजिक और पर्यावरणीय स्तर पर क्षति हुई है।
अर्थव्यवस्था में कृषि क्षेत्र की भूमिका
भारत को प्रति व्यक्ति कार्बन डाइऑक्साइड उत्सर्जन देशों में सबसे कम में से एक के रूप में मान्यता दी गई है और आर्थिक विकास में भारत अग्रणी है, लेकिन मौसम में बदलाव के साथ, इसकी प्रगति में 30% की कमी आई है।
भारत एक कृषि प्रधान देश है। भारतीय अर्थव्यवस्था में कृषि सबसे महत्वपूर्ण कारकों में से एक है। देश के कुल श्रमिकों में से आधे से अधिक कृषि और कृषि में काम कर रहे हैं। 2009 में, भारतीय जीडीपी में इसका योगदान लगभग 16.6% था। यही कारण है कि भारत दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा कृषि उत्पादक है। देश की लगभग 60 प्रतिशत जनसंख्या अपनी आजीविका हेतु कृषि पर ही निर्भर है। कृषि की सकल घरेलू उत्पादन में भागीदारी लगभग 22 प्रतिशत है। वस्तुतः ये तथ्य भारत को विकासशील देशों में शामिल करता हैं। विकसित राष्ट्रों में जहाँ सकल घरेलू उत्पाद में कृषि की भागीदारी का प्रतिशत कम होता है वहीं वहां की अपेक्षाकृत कम जनसंख्या कृषि कार्यों में संलग्न होती है। उदाहरणार्थ, ब्रिटेन व अमेरिका की राष्ट्रीय आय में कृषि की भागीदारी क्रमशः 2 या 3 प्रतिशत है।
मानसून का महत्व
भारत में जून और अक्टूबर के दौरान बारिश होती है। भारतीय किसानों का बड़ा हिस्सा अभी भी कृषि कार्यों के लिए बारिश पर निर्भर है। इस प्रकार, मानसून का मौसम अप्रत्यक्ष रूप से अर्थव्यवस्था को प्रभावित करता है।
उचित आय के लिए सामान्य वर्षा आवश्यक है। सिंचाई की बेहतर प्रथाओं के बावजूद, लगभग 40% क्षेत्र अभी भी बारिश के पानी पर निर्भर है। भारत जैसे बड़े देश में भोजन के मूल्य को बनाए रखना आवश्यक है। खाद्य मुद्रास्फीति पूरे देश को अस्थिर कर सकती है और वे कीमतें कृषि उत्पादन पर निर्भर करती हैं।
भारतीय फसल का मौसम
हालांकि 4 से 5 फसलें केरल और कुछ सिंचाई क्षेत्रों में उगाई जा रही हैं, भारत में खरीफ सीजन (शरद ऋतु) और रबी सीजन (वसंत) के दौरान दो प्रमुख फसलें हैं। खरीफ सीजन (जून-जुलाई) के दौरान बुवाई की जाती है, जिसमें चावल, ज्वार, बाजरा, मक्का, कपास और जूट लिया जाता है।
रबी अक्टूबर-दिसंबर के दौरान बोया जाता है और अप्रैल-मई के दौरान काटा जाता है। इस मौसम में गेहूं, चना, मटर, दालें, सब्जियाँ, बोडो चावल और सरसों महत्वपूर्ण फसलें हैं।