Message By Puneet Sir
सेना में रहे एक अधिकारी ने बताया था कि मेहनत एवं अनुशासन हमारे schedule का अभिन्न अंग है। सैनिकों में सुस्ती न आये इसलिए रोज़ाना कड़ा शारीरिक अभ्यास करवाया जाता है। नए-नए task बनाए जाते हैं, युद्ध जैसी परिस्थितियां काल्पनिक रूप से बनाकर भी प्रैक्टिस चलती रहती है ताकि तैयारी बनी रहे।
पेशेवर गीतकार जैसे वडाली बंधु, नेहा कक्कड़ आदि भी एक दिन में सधा हुआ सुर नहीं लगाने लगे, रोज़ाना कड़े अभ्यास के बाद शोहरत ने इनके क़दम चूमे हैं। सफलता के मुकाम पर पहुंचने के बाद आज भी इनके दिन की शुरुआत अभ्यास से होती है।
आध्यात्मिक क्षेत्र में भी रोज़ाना अपना नित-नेम बनाने की बात बड़े बुज़ुर्ग बताते हैं। शायद इसलिए कि प्रभु का एहसास निरन्तर बना रहे।
लॉकडाउन ने भी कहीं न कहीं students की दिनचर्या को शिथिल तो किया ही है। धींगड़ा क्लासेज़ ने इस समस्या को भांपते हुए विभिन्न विषयों की टेस्ट सीरीज़ शुरू की है। मैथ्स व इतिहास की टॉपिक वाइज टेस्ट सीरीज़ जारी है। अन्य विषयों की टेस्ट सीरीज़ निर्माण का कार्य प्रक्रियाधीन है।
मैं भी एक स्टूडेंट रहा हूँ। स्टूडेंट सोचता है कि #तैयारीहोगीतभीटेस्टदूंगा। लेकिन सच यह है कि टेस्ट दोगे तो ही तैयारी होगी। अपनी कमियां नज़र आएंगी। तैयारी को दिशा मिलेगी। सैनिक की तरह युद्ध की रोज़ प्रैक्टिस करोगे तो असल चुनौती का सामना करने की सही हिम्मत आएगी। जो इस रहस्य को समझ जाता है वो जीत जाता है। किताब हाथ मे लेकर तैयारी तो सारी दुनिया कर रही है। वही काम आप करेंगे तो selection कैसे होगा? दूसरों से अलग चलना होगा, रोज़ चलना होगा, अपना विश्लेषण करना होगा, अपनी ग़लतियाँ टटोलनी होंगी और उन पर काम करना होगा। टेस्ट सीरीज़ पर केवल रजिस्ट्रेशन ही नहीं करना है बल्कि टेस्ट देना भी है। मन से इस डर को निकाल दो कि नंबर कम आएंगे तो क्या होगा? कुछ भी नहीं होगा। ये गुरु और शिष्य की आपसी बात है। आप ग़लती करेंगे तो ही तो आप और हम मिलकर उसका solution ढूंढेंगे। लेकिन ग़लती को नज़रंदाज़ करना तो नासमझी है। श्रीराम गुरु वशिष्ठ के दरवाजे पर खड़े थे। गुरु वशिष्ठ ने पूछा- कौन? भगवान राम बोले- मुझे नहीं मालूम, यही तो जानने आया हूँ।
अपनी अयोग्यता को टेस्ट सीरीज़ से पहचानिए। अयोग्यता के डर को अपने मन से निकाल कर टेस्ट दीजिए। अयोग्यता वाले बिंदुओं पर हम मिलकर काम करेंगे। यही सफलता का रहस्य है।
"योग्यता का पहला लक्षण-अयोग्यता का बोध,
अयोग्यता का पहला लक्षण-योग्यता का दम्भ।"
-पुनीत